बहुत खामोश रहता हूं मेरी फितरत ही ऐसी है।
किसी से कुछ ना कहता हूं मेरी फितरत ही ऐसी है।।
मेरी मां पूछती अक्सर तू क्यूं चुपचाप रहता है।
मैं बस इतना ही कहता हूं मेरी फितरत ही ऐसी है।।
किसी के नाम को लेकर कभी पहचान को लेकर।
बहुत कन्फ़्यूज़ रहता हूं मेरी फितरत ही ऐसी है।।
वो इक चेहरा कभी जब भी तसव्वुर में उभरता है।
अकेला हंसने लगता हूं मेरी फितरत ही ऐसी है।।
तेरी खिड़की से आकर जब पवन छू लेती है दामन।
महीनों तक महकता हूं मेरी फितरत ही ऐसी है।।
कभी तुझपे कभी तेरी अदाओं पे मेरे हमदम।
यूंही अशआर लिखता हूं मेरी फितरत ही ऐसी है।।
इमरान फलक